Sunnat Namaz Ki Niyat: सुन्नत नमाज़ की हिंदी और अरबी नियत जानें

बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम – हर मोमिन के लिए नमाज़ इबादत का सबसे बड़ा तोहफ़ा है। पाँच वक्त की नमाज़ों के साथ-साथ सुन्नत नमाज़ पढ़ना भी बेहद अहम है

क्योंकि ये हमें हमारे प्यारे नबी ﷺ की सुन्नत पर अमल करने का सवाब देता है। आज की इस पोस्ट में हम आपको Sunnat Namaz Ki Niyat हिंदी और अरबी दोनों बताएंगे।

यहां आपको आसान लफ़्ज़ों में हर चीज़ समझाई जाएगी ताकि कहीं और ढूँढने की ज़रूरत न पड़े। ध्यान से पढ़ लेंगे तो 2 रकात और 4 रकात सुन्नत नमाज़ की नियत आसानी से याद हो जाएगी।


Sunnat Namaz Ki Niyat

जैसा कि आप जानते ही हैं कि सुन्नत नमाज़ अलग-अलग वक्त पर 2 रकात और 4 रकात की नियत से अदा की जाती है। आइए एक-एक करके दोनों की नियत जानते हैं:


सुन्नत नमाज़ की 2 रकात की हिंदी नियत

नियत की, मैंने 2 रकअत नमाज़ (नमाज़ का नाम लें जैसे: फ़ज्र) की सुन्नत रसूले पाक ﷺ की वास्ते अल्लाह तआला के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु अकबर।

सुन्नत नमाज़ की 2 रकात की अरबी नियत

नवैतु अन उसल्लिया लिल्लाहि तआला रकअतै सलातिल (नमाज़ का नाम लें जैसे: फ़ज्रि) सुन्नत-रुसूलिल्लाहि मुतवज्जिहन इला जिहातिल-काबातिश-शरीफ़ति, अल्लाहु अकबर।


सुन्नत नमाज़ की 4 रकात की हिंदी नियत

नियत की, मैंने 4 रकअत नमाज़ (नमाज़ का नाम लें जैसे: ज़ोहर) की सुन्नत रसूले पाक ﷺ की वास्ते अल्लाह तआला के, रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु अकबर।

सुन्नत नमाज़ की 4 रकात की अरबी नियत

नवैतुअन उसल्लिया लिल्लाहि तआला अरबा’ रकआति सलातिल (नमाज़ का नाम लें जैसे: ज़ुहरी, अस्री) सुन्नत-रुसूलिल्लाहि मुतवज्जिहन इला जिहातिल-काबातिश-शरीफ़ति, अल्लाहु अकबर।


सुन्नत नमाज़ की नियत कैसे करें?

नियत ज़बान से पढ़ने के साथ-साथ दिल में यह इरादा होना चाहिए कि हम यह नमाज़ सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए पढ़ रहे हैं।

  • नियत करने के बाद “अल्लाहु अकबर” कहते हुए हाथ उठाएं।
  • अगर औरत हैं तो हाथ कांधे तक उठाकर सीने पर बांध लें।
  • अगर मर्द हैं तो हाथ कान तक उठाकर नाफ़ के नीचे बांधें।

हाथ बांधने का तरीका:

  • बायां हाथ नीचे रखें।
  • दाहिना हाथ ऊपर रखें।
  • तीन उंगलियां सीधी रखें और दो उंगलियों से पकड़कर बांध लें।

अंतिम बात

अब आपने जान लिया कि सुन्नत नमाज़ की नियत कैसे करनी है और सही तरीका क्या है। कोशिश करें कि हर नमाज़ में सुन्नत को छोड़ें नहीं, यह हमारी ज़िंदगी और आख़िरत दोनों के लिए भलाई और बरकत का सबब है।

अगर इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद भी आपके मन में कोई सवाल या शक रहे तो नीचे कॉमेंट करके पूछें। इंशाअल्लाह हम आपके सवालों का जवाब देंगे।